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Mahishasur Mardini Stotra

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अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते । भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १ ॥ सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥ अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमलय शृङ्गनिजालय मध्यगते । मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥ अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्द गजाधिपते रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते । निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥ अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते । दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ५ ॥ अयि शरणागत वैरिवधुव

Durga Saptashati : Brief summary of 13 chapters

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Durga Saptashati, also known as Chandi Path or Devi Mahatmyam, is a revered Hindu scripture found in the Markandeya Purana. Comprising 700 verses, it celebrates the victory of Goddess Durga over evil forces and symbolizes the triumph of good over evil. It is traditionally recited during Navratri, and its stories offer deep spiritual insights into the nature of the divine feminine and the power of devotion. Let’s take a brief journey through each of the thirteen chapters of the Durga Saptashati and their meanings: Chapter 1: The Story of King Suratha and Vaishya Samadhi The story begins with King Suratha, who, after losing his kingdom, wanders into a forest. There he meets a merchant, Samadhi, who has been cheated by his family. Both men, despite their suffering, remain attached to their worldly possessions and relationships. They approach Sage Medhas for guidance, who tells them the divine story of the Goddess Durga to help them understand the nature of Maya (illusion) and self-realiza

Putrada Ekadashi Vrat Katha

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एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित मानी गई है ।  हर मास में 2 एकादशी तिथियां पड़ती हैं ।  पुत्रदा एकादशी वर्ष में दो बार आती है। एक बार श्रावण मास में और दूसरी बार पौष मास में।  श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी और पौष मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से साधक की पुत्र प्राप्ति की कामना पूर्ण होती है। पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखने वाले मनुष्य को श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से करना चाहिये। श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा: धर्म ग्रंथों के अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के विषय में पूछा तब उन्होने धर्मराज युधिष्ठिर को इस एकादशी के विषय में बताया था। भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को कहा, हे धर्मराज! श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी, पवित्रोपना एकादशी और पवित्रा एकादशी जैसे अलग अलग नामों से जाना जाता है। इस का महात्म्य इसके नाम मे ही वर्णित है। इस एकादशी का व्रत करने से पुत्र प्राप्ति की कामना पूर्ण होती हैं,

The Seven Types of Gurus

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In the spiritual world, a Guru is more than just a teacher. They are a guiding light, helping seekers navigate the path to enlightenment. There are seven distinct types of Gurus, each playing a unique role in our spiritual and personal development. Let's explore these seven types of Gurus and their specific contributions to our journey. 1. Suchak Guru The Suchak Guru is a master of a specific science or art. These are the experts we often refer to as "gurus" in various fields, such as a Management Guru or a Healing Master. They possess deep knowledge and expertise in their domain, providing valuable insights and guidance to those seeking to learn and excel in that particular area. 2. Vachak Guru The Vachak Guru initiates individuals into spirituality by giving a Diksha Mantra. This sacred mantra is more than just words; it has the power to transform the life of the person receiving it. By bestowing this mantra, the Vachak Guru opens the door to a deeper spiritual experien

Nirjala Ekadashi Vrat Katha

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युधिष्ठिर ने कहा: जनार्दन ! ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी पड़ती हो, कृपया उसका वर्णन कीजिये। भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! इसका वर्णन परम धर्मात्मा सत्यवतीनन्दन व्यासजी करेंगे, क्योंकि ये सम्पूर्ण शास्त्रों के तत्त्वज्ञ और वेद वेदांगों के पारंगत विद्वान हैं। तब वेदव्यासजी कहने लगे : दोनों ही पक्षों की एकादशियों के दिन भोजन न करे। द्वादशी के दिन स्नान आदि से पवित्र हो फूलों से भगवान केशव की पूजा करे। फिर नित्य कर्म समाप्त होने के पश्चात् पहले ब्राह्मणों को भोजन देकर अन्त में स्वयं भोजन करे। राजन् ! जननाशौच और मरणाशौच में भी एकादशी को भोजन नहीं करना चाहिए।  यह सुनकर भीमसेन बोले : परम बुद्धिमान पितामह ! मेरी उत्तम बात सुनिये। राजा युधिष्ठिर, माता कुन्ती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव ये एकादशी को कभी भोजन नहीं करते तथा मुझसे भी हमेशा यही कहते हैं कि : ‘भीमसेन ! तुम भी एकादशी को न खाया करो…’ किन्तु मैं उन लोगों से यही कहता हूँ कि मुझसे भूख नहीं सही जायेगी। भीमसेन की बात सुनकर व्यासजी ने कहा : यदि तुम्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति अभीष्ट है और नरक को दूषित समझते हो तो दोनों पक्षों की

Mahisasur Mardini Stotra

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अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमोदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते । गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि शम्भुविलासिनि विष्णुनुते। भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१॥ सुरवर वर्षिणि दुर्धर धर्षिणि दुर्मुख मर्षिणि हर्षरते त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिष मोषिणि घोषरते। दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥२॥ अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रिय वासिनि हासरते शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमालय शृङ्गनिजालय मध्यगते। मधुमधुरे [२]मधुकैटभ गञ्जिनि कैटभ भञ्जिनि रासरते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥३॥ अयि शतखण्ड विखण्डित रुण्ड वितुण्डित शुंड गजाधिपते रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते। निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥४॥ अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते। दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदूत कृतान्तमते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥५॥ अयि शरणागत वैरिवधुव

12 Moon Sign and their Personality

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Each Moonsign has a unique flavor influenced by its ruling planet. People born under a Moonsign carry the characteristics of that planet in their personality. Here is a brief introduction to how these planetary influences shape individuals and create diverse personalities. Mesh (Aries): Mesh ruled by Mangal, are adventurous leaders. They're bold and passionate, always up for a challenge. Think of them as the go-getters who love taking charge and making things happen. Vrishabh (Taurus): Vrishabh, governed by Shukra, are grounded and reliable. They value stability, enjoying life's comforts. Loyalty is their strong suit, and they're patient individuals who take things one step at a time. Mithun (Gemini): Mithun, ruled by Budh, are versatile and curious. They love to chat and are quick-witted, making them great conversationalists. Imagine them as the social butterflies who adapt to any situation. Karka (Cancer): Kark, ruled by Chandra, are nurturing and emotional. Family is the

Pradosh Dates (Year 2024)

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09/01/2024 : भौम प्रदोष व्रत 23/01/2024 : भौम प्रदोष व्रत 07/02/2024 : बुध प्रदोष व्रत 21/02/2024 : बुध प्रदोष व्रत 08/03/2024 : शुक्र प्रदोष व्रत 22/03/2024 : शुक्र प्रदोष व्रत 06/04/2024 : शनि प्रदोष व्रत 21/04/2024 : रवि प्रदोष व्रत 05/05/2024 : रवि प्रदोष व्रत 20/05/2024 : सोम प्रदोष व्रत 04/06/2024 : भौम प्रदोष व्रत 19/06/2024 : बुध प्रदोष व्रत 03/07/2024 : बुध प्रदोष व्रत 18/07/2024 : गुरु प्रदोष व्रत 01/08/2024 : गुरु प्रदोष व्रत 17/08/2024 : शनि प्रदोष व्रत 31/08/2024 : शनि प्रदोष व्रत 15/09/2024 : रवि प्रदोष व्रत 29/09/2024 : रवि प्रदोष व्रत 15/10/2024 : भौम प्रदोष व्रत 29/10/2024 : भौम प्रदोष व्रत 13/11/2024 : बुध प्रदोष व्रत 28/11/2024 : गुरु प्रदोष व्रत 13/12/2024 : शुक्र प्रदोष व्रत 28/12/2024 : शनि प्रदोष व्रत II ॐ नमः शिवाय II

Sankashti Chaturthi Dates (Year 2024)

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29/01/2024: लम्बोदर संकष्टी चतुर्थी 28/02/2024: द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी 28/03/2024: भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी 27/04/2024: विकट संकष्टी चतुर्थी 26/05/2024: एकदन्त संकष्टी चतुर्थी 25/06/2024: कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी (अंगारकी) 24/07/2024: गजानन संकष्टी चतुर्थी 22/08/2024: हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी (बहुला चतुर्थी) 21/09/2024: विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी 20/10/2024: वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी (करवा चौथ) 18/11/2024: गणाधिप संकष्टी चतुर्थी 18/12/2024: अखुरथ संकष्टी चतुर्थी

Ekadashi Dates (Year 2024)

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07/01/2024 : सफला एकादशी 21/01/2024 : पुत्रदा एकादशी 06/02/2024 : षटतिला एकादशी 20/02/2024 : जया एकादशी 06/03/2024 : विजया एकादशी 07/03/2024 : एकादशी (वैष्णव) 20/03/2024 : आमलकी एकादशी 05/04/2024 : पापमोचिनी एकादशी 19/04/2024 : कामदा एकादशी 04/05/2024 : बरूथिनी एकादशी 19/05/2024 : मोहिनी एकादशी 02/06/2024 : अपरा एकादशी 03/06/2024 : एकादशी (वैष्णव) 18/06/2024 : निर्जला एकादशी 02/07/2024 : योगिनी एकादशी 17/07/2024 : देवशयनी एकादशी 31/07/2024 : कामिका एकादशी 16/08/2024 : पुत्रदा एकादशी 29/08/2024 : अजा एकादशी 14/09/2024 : परिवर्तिनी एकादशी 28/09/2024 : इन्दिरा एकादशी 13/10/2024 : पापांकुशा एकादशी 14/10/2024 : एकादशी (वैष्णव) 28/10/2024 : रमा एकादशी 12/11/2024 : देवुत्थान एकादशी 26/11/2024 : उत्पन्ना एकादशी 11/12/2024 : मोक्षदा एकादशी 26/12/2024 : सफला एकादशीी

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