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Showing posts from July, 2023

Watch Upnishad Ganga

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'Upnishad Ganga' - teleserial were aired on Doordarshan. This teleserial was conceptualised by Swami Tejomayananda with a vision to take the message of the Upanishads to the masses. Written and directed by Dr. Chandraprakash Dwivedi with Executive Production by Wisdomtree Productions, Upanishad Ganga covers the entire gamut on Indian culture, heritage, philosophy and wisdom spanning more than 5000 years. A unique and riveting feature of this dedicated and mammoth serial is that it employs three mediums – theatre, storytelling and television. Through the innovative Great Indian Theatre, the ancient Indian wisdom is shared in a style which synergizes the traditional with the modern. The invaluable insights into culture, right living, the four goals of human life, glory of human birth, ethics and much more are delivered in Hindi, in a simple yet engrossing manner, through 52 episodes. It’s old, yet new, it’s meant for you! You can watch all 52 episodes of 'Upnishad

Book Puja in Shravan Month

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Namaste to all the devotees of Lord Shiva! The month of Shravan, also known as Sawan is believed to be the most auspicious period for worshiping Lord Shiva. We are delighted to announce Rudra Puja including Navgrah Shanti Puja in Shravan Month, designed to invoke the divine blessings of Lord Shiva and Navgrah. This special puja in Shravan Month is done for prosperity, fulfilment of desires, removal of negativities, purify the negative karma & give protection in your life. We highly recommend this Puja for you as it’s the ultimate solution for all your problems. Puja Location: We understand that every devotee's preference is unique, which is why we offer both online and offline options for this Puja. You can choose to participate in this puja virtually, from the comfort of your home, or join us physically. About online puja: After receiving your Puja request and donation, Our team of Brahmins will do puja on your behalf with your name and gotra. The Puja will be performed on pro

Benefits of Surya Namaskar

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Surya Namaskar, also known as Sun Salutation, is a powerful yoga sequence that combines a series of asanas (poses) and Sanskrit mantras to pay homage to the sun. Practicing Surya Namaskar regularly can bring numerous benefits to both the body and mind. Physical Benefits: 1. Flexibility: Surya Namaskar gently stretches and tones the muscles, increasing overall flexibility. 2. Strengthens Muscles: The various poses engage different muscle groups, promoting strength and stability. 3. Improves Posture: Regular practice helps correct posture and aligns the spine. 4. Boosts Circulation: The dynamic flow enhances blood circulation, nourishing the body's cells and organs. 5. Weight Management: Surya Namaskar can aid in weight loss by stimulating metabolism and burning calories. 6. Enhances Lung Capacity: Deep breaths during the practice expand lung capacity and improve respiratory health. Mental Benefits: 1. Reduces Stress: The rhythmic movements and focused breathing calm the

Shani Panoti (Year 2023)

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ज्योतिषशास्त्र के अनुसार गोचर में जब शनि जातक की जन्मराशि से प्रथम, द्वितीय और द्वादश स्थान में हों तो शनि की साढ़ेसाती या शनि की पनोती कहलाती है। शनि की साढ़ेसाती के 2.5 साल के तीन चरण, यानी 7.5 साल होते हैं। वहीं गोचर में जब शनि जातक की राशि से चतुर्थ और अष्टम भाव में हों तो ढैय्या या छोटी पनोती कहलाती है, जिसका समय 2.5 साल का होता है। 17 जनवरी 2023 से शनिदेवने कुंभ राशिमें प्रवेश किया है। साल 2023 में इन राशि के जातको के ऊपर शनि की साढ़ेसाती और ढैया का प्रभाव बना रहेगा : न्याय के देवता शनिदेव हर किसी को कर्मों के हिसाब से शुभ और अशुभ प्रभाव देते हैं, जो व्यक्ति जैसा कर्म करता है, वैसा ही फल शनिदेव उसको देते हैं। शनि की साढ़ेसाती के समय में शनिदेव के मंत्र जप एवं विशेष उपासना से अशुभ प्रभाव को कम कर सकते है।

Sankashti Chaturthi (Year 2023)

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पंचांग के अनुसार हर महीने दो चतुर्थी आती है। एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है, जबकि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है। गणेश चतुर्थी व्रत भगवान गणेश को समर्पित है। इस दिन गणेश जी की विशेष पूजा की जाती है। 10/01/2023, मंगलवार : लम्बोदर संकष्टी चतुर्थी (अंगारकी चतुर्थी) 09/02/2023, गुरुवार : द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी 11/03/2023, शनिवार : भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी 09/04/2023, रविवार : विकट संकष्टी चतुर्थी 08/05/2023, सोमवार : एकदन्त संकष्टी चतुर्थी 07/06/2023, बुधवार : कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी 06/07/2023, गुरुवार : गजानन संकष्टी चतुर्थी 04/08/2023, शुक्रवार : विभुवन संकष्टी चतुर्थी 03/09/2023, रविवार : हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी (बहुला चतुर्थी) 02/10/2023, सोमवार : विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी 01/11/2023, बुधवार : वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी (करवा चौथ) 30/11/2023, गुरुवार : गणाधिप संकष्टी चतुर्थी 30/12/2023, शनिवार : अखुरथ संकष्टी चतुर्थी

Jay Aadhya Shakri Aarti

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जय आद्या शक्ति, माँ जय आद्या शक्ति । अखंड ब्रह्माण्ड दीपाव्या, पडवे पंडित माँ … ॐ जयो जयो माँ जगदम्बे द्वितीया बेउ स्वरूप, शिवशक्ति जानु । ब्रह्मा गणपती गाये, हर गाये हर माँ… ॐ जयो जयो माँ जगदम्बे तृतीया त्रण स्वरुप त्रिभुवनमां बेठा । त्रया थकी तरवेणी, तू तेरवेणी … ॐ जयो जयो माँ जगदम्बे चोथे चतुरा महालक्ष्मी माँ सचराचर व्याप्या । चार भुजा चौ दिशा, प्रगट्या दक्षिण मां… ॐ जयो जयो माँ जगदम्बे पंचमी पंच ऋषी, पंचमी गुण पदमां । पंच सहस्त्रा त्यां सोहिये, पंचे तत्वो मां… ॐ जयो जयो माँ जगदम्बे षष्ठी तुं नारायणी महिसासुर मारयो । नर नारीने रुपे व्याप्या सघले माँ… ॐ जयो जयो माँ जगदम्बे सप्तमी सप्त पाताल संध्या सावित्री । गौ गंगा गायत्री, गौरी गीता माँ… ॐ जयो जयो माँ जगदम्बे अष्टमी अष्ट भुजा आई आनंदा । सुनीवर मुनीवर जन्म्या, देवो दैत्यो मां… ॐ जयो जयो माँ जगदम्बे नवमी नवगुण नाग सेवे नवदुर्गा । नवरात्रीना पूजन, शिवरात्रीना अर्चन, कीधा हर ब्रह्मा… ॐ जयो जयो माँ जगदम्बे दसमे दस अवतार जय विजयादशमी । रामे रावण मार्‍या, रावण रोड्यो माँ… ॐ जयो जयो माँ जगदम्बे एकादशी अगीयारस कात्यायनी कामा । काम दुर्गा का

Jay Shiv Omkara Aarti

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ॐ जय शिव ॐकारा प्रभु हर शिव ॐकारा ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्धांगी धारा.. ॐ हर हर हर महादेव एकानन चतुरानन पंचानन राजे, स्वामी पंचानन राजे . हंसासन गरुड़ासन वृष वाहन साजे .. ॐ हर हर हर महादेव दो भुज चारु चतुर्भुज दस भुज से सोहे, स्वामी दस भुज से सोहे . तीनों रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे .. ॐ हर हर हर महादेव अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी, स्वामि मुण्डमाला धारी . चंदन मृग मद सोहे भाले शशि धारी .. ॐ हर हर हर महादेव श्वेताम्बर पीताम्बर बाघाम्बर अंगे, स्वामी बाघाम्बर अंगे . सनकादिक ब्रह्मादिक भूतादिक संगे .. ॐ हर हर हर महादेव कर में श्रेष्ठ कमण्डलु चक्र त्रिशूल धारी, स्वामी चक्र त्रिशूल धारी . जगकर्ता जगहर्ता जग पालन कर्ता .. ॐ हर हर हर महादेव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका, स्वामि जानत अविवेका . प्रणवाक्षर में शोभित यह तीनों एका . ॐ हर हर हर महादेव निर्गुण शिव की आरती जो कोई नर गावे, स्वामि जो कोई नर गावे . कहत शिवानंद स्वामी मन वाँछित फल पावे . ॐ हर हर हर महादेव

Pradosh Vrat Dates (Year 2023)

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Pradosh Vrat is dedicated to Lord Shiva and Goddess Parvati. It falls on the 13th day (Trayodashi) of both Shukla Paksha and Krishna Paksha of the Hindu calendar. This auspicious day is observed to seek blessings, cleanse the soul, and attain spiritual growth. Pradosh Vrat is believed to have immense spiritual significance. It is said that observing this fast with devotion can remove past sins and purify the soul, fulfill wishes and desires, and enhance spiritual growth and inner peace. Dates for Pradosh Vrat in year 2023: 04/01/2023: Budh Pradosh Vrat 19/01/2023: Guru Pradosh Vrat 02/02/2023: Guru Pradosh Vrat 18/02/2023: Shani Pradosh Vrat 04/03/2023: Shani Pradosh Vrat 19/03/2023: Ravi Pradosh Vrat 03/04/2023: Som Pradosh Vrat 17/04/2023: Som Pradosh Vrat 03/05/2023: Budh Pradosh Vrat 17/05/2023: Budh Pradosh Vrat 01/06/2023: Guru Pradosh Vrat 15/06/2023: Guru Pradosh Vrat 01/07/2023: Shani Pradosh Vrat 04/07/2023: Shukra Pradosh Vrat 30/07/2023: Ravi Pradosh Vrat 13/08/2023: Ravi P

Shree Suktam

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हरिः ॐ हिरण्यवर्णांहरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् । चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मींजातवेदो म आवह ॥ तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् । यस्यां हिरण्यं विन्देयंगामश्वं पुरुषानहम् ॥ अश्वपूर्वां रथमध्यांहस्तिनादप्रबोधिनीम् । श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवीजुषताम् ॥ कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् । पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् । तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥ आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः । तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥ उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह । प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥ क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् । अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात् ॥ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् । ईश्वरीं सर्वभूतानांतामिहोपह्वये श्रियम् ॥ मनसः काममाकूतिंवाचः सत्यमशीमहि । पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥ कर्दमेन प्रजाभूता मयि सम्भव कर्

Shiv Tandav Stotra

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जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्‌। डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम्‌ ॥१॥ जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि। धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम: ॥२॥ धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे। कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥ जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे। मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥ सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः। भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥ ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्‌। सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥ करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरीकृतप्रचंड पंचसायके। धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥ नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धर

Shiv Manas Puja

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रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं । नाना रत्नविभूषितम्‌ मृगमदा मोदांकितम्‌ चंदनम ॥ जाती चम्पकबिल्वपत्ररचितं पुष्पं च धूपं तथा । दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितम्‌ गृह्यताम्‌ ॥1॥ सौवर्णे नवरत्नखंडरचिते पात्र धृतं पायसं । भक्ष्मं पंचविधं पयोदधियुतं रम्भाफलं पानकम्‌ ॥ शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूर खंडौज्ज्वलं । ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु ॥2॥ छत्रं चामर योर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निमलं । वीणा भेरिमृदंगकाहलकला गीतं च नृत्यं तथा ॥ साष्टांग प्रणतिः स्तुति-र्बहुविधा ह्येतत्समस्तं मया । संकल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो ॥3॥ आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं । पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः ॥ संचारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो । यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्‌ ॥4॥ करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्‌ । विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो ॥

Shiv Mahimna Stotra

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श्री पुष्पदन्त उवाच महिम्नः पारं ते परमविदुषो यद्यसदृशी स्तुतिर्ब्रह्मादीनामपि तदवसन्नास्त्वयि गिरः । अथाऽवाच्यः सर्वः स्वमतिपरिणामावधि गृणन् ममाप्येष स्तोत्रे हर निरपवादः परिकरः ॥ 1 ॥ अतीतः पन्थानं तव च महिमा वाङ्मनसयोः रतद्व्यावृत्त्या यं चकितमभिधत्ते श्रुतिरपि । स कस्य स्तोतव्यः कतिविधगुणः कस्य विषयः पदे त्वर्वाचीने पतति न मनः कस्य न वचः ॥ 2 ॥ मधुस्फीता वाचः परमममृतं निर्मितवतः स्तवब्रह्मन् किं वा गपि सुरगुरोर्विस्मयपदम् । मम त्वेतां वाणीं गुणकथनपुण्येन भवतः पुनामीत्यर्थेऽस्मिन् पुरमथन बुद्धिर्व्यवसिता ॥ 3 ॥ तवैश्वर्यं यत्तज्जगदुदयरक्षाप्रलयकृत् त्रयीवस्तु व्यस्तं त्रिसुषु गुणभिन्नासु तनुषु । अभव्यानामस्मिन् वरद रमणीयामरमणीं विहन्तुं व्याक्रोशीं विदधत इहैके जडधियः ॥ 4 ॥ किमीहः किङ्कायः स खलु किमुपायस्त्रिभुवनं किमाधारो धाता सृजति किमुपादान इति च । अतर्क्यैश्वर्ये त्वय्यनवसर दुःस्थो हतधियः कुतर्कोऽयं कांश्चित् मुखरयति मोहाय जगतः ॥ 5 ॥ अजन्मानो लोकाः किमवयववन्तोऽपि जगतां अधिष्ठातारं किं भवविधिरनादृत्य भवति । अनीशो वा कुर्याद् भुवनजनने कः परिकरो यतो मन्दास्त्वां प्रत्यमरवर संशेरत इमे ॥

Shakraday Stuti

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ऋषिरुवाच शक्रादयः सुरगणा निहतेऽतिवीर्ये तस्मिन्दुरात्मनि सुरारिबले च देव्या । तां तुष्टुवुः प्रणतिनम्रशिरोधरांसा वाग्भिः प्रहर्षपुलकोद्‌गमचारुदेहाः ॥ देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या निश्‍शेषदेवगणशक्तिसमूहमूर्त्या । तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां भक्त्या नताः स्मविदधातु शुभानि सा नः ॥ यस्याः प्रभावमतुलं भगवाननन्तो ब्रह्मा हरश्‍च न हि वक्तुमलं बलं च । सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु ॥ या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः । श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम् ॥ किं वर्णयाम तव रूपमचिन्त्यमेतत् किं चातिवीर्यमसुरक्षयकारि भूरि । किं चाहवेषु चरितानि तवाति यानि सर्वेषु देव्यसुरदेवगणादिकेषु ॥ हेतुः समस्तजगतां त्रिगुणापि दोषैर्न ज्ञायसे हरिहरादिभिरप्यपारा । सर्वाश्रयाखिलमिदं जगदंशभूत मव्याकृता हि परमा प्रकृतिस्त्वमाद्या ॥ यस्याः समस्तसुरता समुदीरणेन तृप्तिं प्रयाति सकलेषु मखेषु देवि । स्वाहासि वै पितृगणस्य च तृप्तिहेतु- रुच्चार्यसे त्वमत एव जनैः स्वधा च ॥ या मुक्तिहेतुरविचिन्त्यमहाव्रता त्व- मभ्यस्

Sankat Nashan Ganesh Stotra

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प्रणम्यं शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम । भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये ।।1।। प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम । तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम ।।2।। लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च । सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टकम् ।।3।। नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम । एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम ।।4।। द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर: । न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ।।5।। विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् । पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।6।। जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत् । संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ।।7।। अष्टाभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत । तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत: ।।8।।

Rudrashtakam Stotra

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नमामीशमीशाननिर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् । निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥ १॥ निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् । करालं महाकालकालं कृपालं गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ॥ २॥ तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं मनोभूतकोटिप्रभा श्रीशरीरम् । स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥ ३॥ चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् । मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ॥ ४॥ प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशमखण्डमजं भानुकोटिप्रकाशम् । त्रयः शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥ ५॥ कलातीतकल्याणकल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी । चिदानन्दसन्दोहमोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ ६॥ न यावद् उमानाथ पादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् । न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥ ७॥ न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् । जराजन्मदुःखौघतातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥ ८॥ रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये । ये पठन्ति न

Purush Sukta

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हरिः ॐ स॒हस्र॑शीर्षा॒ पुरु॑षः । स॒ह॒स्रा॒क्षः स॒हस्र॑पात् । स भूमिं॑ वि॒श्वतो॑ वृ॒त्वा । अत्य॑तिष्ठद्दशाङ्गु॒लम् ॥ १ ॥ पुरु॑ष ए॒वेद सर्वम्᳚ । यद्भू॒तं यच्च॒ भव्यम्᳚। उ॒तामृ॑त॒त्वस्येशा॑नः । यदन्ने॑नाति॒रोह॑ति ॥ २ ॥ ए॒तावा॑नस्य महि॒मा । अतो॒ ज्यायाश्च॒ पूरु॑षः । पादो᳚ऽस्य॒ विश्वा॑ भू॒तानि॑ । त्रि॒पाद॑स्या॒मृतं॑ दि॒वि ॥ ३ ॥ त्रि॒पादू॒र्ध्व उदै॒त्पुरु॑षः । पादो᳚ऽस्ये॒हाऽऽभ॑वा॒त्पुनः॑ । ततो॒ विश्व॒ङ्व्य॑क्रामत् । सा॒श॒ना॒न॒श॒ने अ॒भि ॥ ४ ॥ तस्मा᳚द्वि॒राड॑जायत । वि॒राजो॒ अधि॒ पूरु॑षः । स जा॒तो अत्य॑रिच्यत । प॒श्चाद्भूमि॒मथो॑ पु॒रः ॥ ५ ॥ यत्पुरु॑षेण ह॒विषा᳚ । दे॒वा य॒ज्ञमत॑न्वत । व॒स॒न्तो अ॑स्यासी॒दाज्यम्᳚ । ग्री॒ष्म इ॒ध्मः श॒रद्ध॒विः ॥ ६ ॥ स॒प्तास्या॑सन्परि॒धयः॑ । त्रिः स॒प्त स॒मिधः॑ कृ॒ताः । दे॒वा यद्य॒ज्ञं त॑न्वा॒नाः । अब॑ध्न॒न्पु॑रुषं प॒शुम् ॥ ७ ॥ तं य॒ज्ञं ब॒र्हिषि॒ प्रौक्षन्॑ । पुरु॑षं जा॒तम॑ग्र॒तः । तेन॑ दे॒वा अय॑जन्त । सा॒ध्या ऋष॑यश्च॒ ये ॥ ८ ॥ तस्मा᳚द्य॒ज्ञात्स॑र्व॒हुतः॑ । संभृ॑तं पृषदा॒ज्यम् । प॒शूꣳस्ताꣳश्च॑क्रे वाय॒व्यान्॑ । आ॒र॒ण्यान्ग्रा॒म्याश्च॒ ये ॥ ९ ॥ तस्मा᳚द्य॒ज्ञात्स॑र्व॒हु

Pitru Stotra

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अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् । नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम् ॥ जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न है, उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूं। इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा । सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ॥ जो इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता है, कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूं। मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा । तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि ॥ जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक है, उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी नमस्कार करता हूं। नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा । द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि: ॥ नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूं। देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् । अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि: ॥ जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथ

Maha Mrityunjay Stotra

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॥ श्री गणेशाय नमः ॥ ॐ अस्य श्रीमहामृत्युञ्जयस्तोत्रमन्त्रस्य श्री मार्कण्डेय ऋषिः, अनुष्टुप्छन्दः, श्रीमृत्युञ्जयो देवता, गौरी शक्तिः, मम सर्वारिष्टसमस्तमृत्युशान्त्यर्थं सकलैश्वर्यप्राप्त्यर्थं जपे विनोयोगः । ध्यानम् चन्द्रार्काग्निविलोचनं स्मितमुखं पद्मद्वयान्तस्थितं मुद्रापाशमृगाक्षसत्रविलसत्पाणिं हिमांशुप्रभम् । कोटीन्दुप्रगलत्सुधाप्लुततमुं हारादिभूषोज्ज्वलं कान्तं विश्वविमोहनं पशुपतिं मृत्युञ्जयं भावयेत् ॥ रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नीलकण्ठमुमापतिम् । नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति ॥1॥ नीलकण्ठं कालमूर्त्तिं कालज्ञं कालनाशनम् । नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति ॥2॥ नीलकण्ठं विरूपाक्षं निर्मलं निलयप्रदम् । नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति ॥3॥ वामदेवं महादेवं लोकनाथं जगद्गुरुम् । नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति ॥4॥ देवदेवं जगन्नाथं देवेशं वृषभध्वजम् । नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति ॥5॥ त्र्यक्षं चतुर्भुजं शान्तं जटामकुटधारिणम् । नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति ॥6॥ भस्मोद्धूलितसर्वाङ्गं नागाभरणभूषितम् । नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः क

Lingashtakam Stotra

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ब्रह्ममुरारि सुरार्चित लिङ्गं, निर्मलभासित शोभित लिङ्गम् । जन्मज दुःख विनाशक लिङ्गं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 1 ॥ देवमुनि प्रवरार्चित लिङ्गं, कामदहन करुणाकर लिङ्गम् । रावण दर्प विनाशन लिङ्गं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 2 ॥ सर्व सुगन्ध सुलेपित लिङ्गं, बुद्धि विवर्धन कारण लिङ्गम् । सिद्ध सुरासुर वन्दित लिङ्गं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 3 ॥ कनक महामणि भूषित लिङ्गं, फणिपति वेष्टित शोभित लिङ्गम् । दक्षसुयज्ञ विनाशन लिङ्गं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 4 ॥ कुङ्कुम चन्दन लेपित लिङ्गं, पङ्कज हार सुशोभित लिङ्गम् । सञ्चित पाप विनाशन लिङ्गं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 5 ॥ देवगणार्चित सेवित लिङ्गं, भावै-र्भक्तिभिरेव च लिङ्गम् । दिनकर कोटि प्रभाकर लिङ्गं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 6 ॥ अष्टदलोपरिवेष्टित लिङ्गं, सर्वसमुद्भव कारण लिङ्गम् । अष्टदरिद्र विनाशन लिङ्गं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 7 ॥ सुरगुरु सुरवर पूजित लिङ्गं, सुरवन पुष्प सदार्चित लिङ्गम् । परात्परं परमात्मक लिङ्गं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् ॥ 8 ॥ लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेश्शिव सन्निधौ । शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते

Guru Paduka Stotra

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अनंत संसार समुद्र तार नौकायिताभ्यां गुरुभक्तिदाभ्यां। वैराग्य साम्राज्यद पूजनाभ्यां नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां ॥१॥ कवित्व वाराशि निशाकराभ्यां दौर्भाग्यदावांबुदमालिक्याभ्यां। दूरीकृतानम्र विपत्तिताभ्यां नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां ॥२॥ नता ययोः श्रीपतितां समीयुः कदाचिदप्याशु दरिद्रवर्याः। मूकाश्च वाचसपतितां हि ताभ्यां नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां ॥३॥ नाली कनी काशपदाहृताभ्यां नानाविमोहादिनिवारिकाभ्यां। नमज्जनाभीष्टततिब्रदाभ्यां नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां ॥४॥ नृपालिमौलि ब्रज रत्न कांति सरिद्विराज्झषकन्यकाभ्यां। नृपत्वदाभ्यां नतलोकपंक्ते: नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां ॥५॥ पापांधकारार्क परंपराभ्यां तापत्रयाहीन्द्र खगेश्वराभ्यां। जाड्याब्धि संशोषणवाड्वाभ्यां नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां ॥६॥ शमादिषट्क प्रदवैभवाभ्यां समाधि दान व्रत दीक्षिताभ्यां। रमाधवांघ्रि स्थिरभक्तिदाभ्यां नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां ॥७॥ स्वार्चा पराणामखिलेष्टदाभ्यां स्वाहासहायाक्ष धुरंधराभ्यां। स्वान्ताच्छ भावप्रदपूजनाभ्यां नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां ॥८॥ कामादिसर्प व्रजगारुडाभ्यां विवेक वैराग्य निधि प्रदाभ्या

Ganpati Atharvashirsh

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ॐ नमस्ते गणपतये । त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि । त्वमेव केवलं कर्ताऽसि । त्वमेव केवलं धर्ताऽसि । त्वमेव केवलं हर्ताऽसि । त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि । त्व साक्षादात्माऽसि नित्यम् । ऋतं वच्मि । सत्यं वच्मि । अव त्व मां । अव वक्तारं । अव श्रोतारं । अव दातारं । अव धातारं । अवानूचानमव शिष्यं । अव पश्चातात । अव पुरस्तात । अवोत्तरात्तात । अव दक्षिणात्तात् । अवचोर्ध्वात्तात् । अवाधरात्तात् । सर्वतो मां पाहि-पाहि समंतात् । त्वं वाङ्‍मयस्त्वं चिन्मय: । त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय: । त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽसि । त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि । त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि । सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते । सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति । सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति । सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति । त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ: । त्वं चत्वारिवाक्पदानि । त्वं गुणत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत: । त्वं देहत्रयातीत: । त्वं कालत्रयातीत: । त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं । त्वं शक्तित्रयात्मक: । त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं । त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्र

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